18-11-85  ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

भगवान के भाग्यवान बच्चों के लक्षण

भाग्यविधाता बापदादा बोले

बापदादा सभी बच्चों के मस्तक पर भाग्य की रेखायें देख रहे हैं। हर एक बच्चे के मस्तक पर भाग्य की रेखायें लगी हुई हैं लेकिन किस-किस बच्चों की स्पष्ट रेखायें हैं और कोई-कोई बच्चों की स्पष्ट रेखायें नहीं हैं। जब से भगवान बाप के बने, भगवान अर्थात् भाग्य विधाता। भगवान अर्थात् दाता विधाता। इसलिए बच्चे बनने से भाग्य का अधिकार अर्थात् वर्सा सभी बच्चों को अवश्य प्राप्त होता है। परन्तु उस मिले हए वर्से को जीवन में धारण करना, सेवा में लगाकर श्रेष्ठ बनाना स्पष्ट बनाना इसमें नम्बरवार हैं। क्योंकि यह भाग्य जितना स्वयं प्रति वा सेवा प्रति कार्य में लगाते हो उतना बढ़ता है। अर्थात् रेखा स्पष्ट होती है। बाप एक है और देता भी सभी को एक जैसा है। बाप नम्बरवार भाग्य नहीं बांटता लेकिन भाग्य बनाने वाले अर्थात् भाग्यवान बनने वाले इतने बड़े भाग्य को प्राप्त करने में यथाशक्ति होने के कारण नम्बरवार हो जाते हैं। इसलिए कोई की रेखा स्पष्ट हैं, कोई की स्पष्ट नहीं है। स्पष्ट रेखा वाले बच्चे स्वयं भी हर कर्म में अपने को भाग्यवान अनुभव करते। साथ-साथ उन्हों के चेहरे और चलन से भाग्य औरों को भी अनुभव होता है। और भी ऐसे भाग्यवान बच्चों को देख सोचते और कहते कि यह आत्मायें बड़ी भाग्यवान हैं। इनका भाग्य सदा श्रेष्ठ है। अपने आप से पूछो हर कर्म में अपने को भगवान के बच्चे भाग्यवान अनुभव करते हो? भाग्य आपका वर्सा है। वर्सा कभी न प्राप्त हो यह हो नहीं सकता। भाग्य को वर्से के रूप में अनुभव करते हो? वा मेहनत करनी पड़ती है। वर्सा सहज प्राप्त होता है। मेहनत नहीं। लौकिक में भी बाप के खजाने पर, वर्से पर बच्चे का स्वत: अधिकार होता है। और नशा रहता है कि बाप का वर्सा मिला हुआ है। ऐसे भाग्य का नशा है वा चढ़ता और उतरता रहता है? अविनाशी वर्सा है तो कितना नशा होना चाहिए! एक जन्म तो क्या अनेक जन्मों का भाग्य जन्मसिद्ध अधिकार है। ऐसी फलक से वर्णन करते हो? सदा भाग्य की झलक प्रत्यक्ष रूप में औरों को दिखाई दे। फलक और झलक दोनों हैं? मर्ज रूप में है वा इमर्ज रूप में है? भाग्यवान आत्माओं की निशानी - भाग्यवान आत्मा सदा चाहे गोदी में पलती, चाहे गलीचों पर चलती, झूलों में झूलती, मिट्टी में पांव नहीं रखती, कभी पांव मैले नहीं होते। वो लोग गलीचों पर चलते और आप बुद्धि रूपी पांव से सदा फर्श के बजाए फरिश्तों की दुनिया में रहते। इस पुरानी मिट्टी की दुनिया में बुद्धि रूपी पांव नहीं रखते अर्थात् बुद्धि मैली नहीं करते। भाग्यवान मिट्टी के खिलौने से नहीं खेलते। सदा रत्नों से खेलते हैं। भाग्यवान सदा सम्पन्न रहते। इसलिए ‘इच्छा मात्रम् अविद्या’ इसी स्थिति में रहते हैं। भाग्यवान आत्मा सदा महादानी पुण्य आत्मा बन औरों का भी भाग्य बनाते रहते हैं। भाग्यवान आत्मा सदा ताज, तख्त और तिलकधारी रहती है। भाग्यवान आत्मा जितना ही भाग्य अधिकारी उतना ही त्यागधारी आत्मा होती है। भाग्य की निशानी त्याग है। त्याग भाग्य को स्पष्ट करता है। भाग्यवान आत्मा, सदा भगवान समान निराकारी, निरअहंकारी और निर्विकारी, इन तीनों विशेषताओं से भरपूर होती है। यह सब निशानियाँ अपने में अनुभव करते हो? भाग्यवान की लिस्ट में तो हो ही ना! लेकिन यथाशक्ति हो वा सर्वशक्तिवान हो? मास्टर तो हो ना? बाप की महिमा में कभी यथा शक्ति वा नम्बरवार नहीं कहा जाता, सदा सर्वशक्तिवान कहते हैं। मास्टर सर्वशक्तिवान फिर यथाशक्ति क्यों? सदा शक्तिवान। यथा शब्द को बदल सदा शक्तिवान बनो और बनाओ। समझा।

कौन से जोन आये हैं? सभी वरदान भूमि में पहुँच वरदानों से झोली भर रहे हो ना! वरदान भूमि के एक-एक चरित्र में, कर्म में विशेष वरदान भरे हुए हैं। यज्ञ भूमि में आकर चाहे सब्जी काटते हो, अनाज़ साफ करते हो, इसमें भी यज्ञ सेवा का वरदान भरा हुआ है। जैसे यात्रा पर जाते हैं, मन्दिर की सफाई करना भी एक बड़ा पुण्य समझते हैं। इस महातीर्थ वा वरदान भूमि के हर कर्म में हर कदम में वरदान ही वरदान भरे हुए हैं। कितनी झोली भरी है? पूरी झोली भर करके जायेंगे या यथाशक्ति? जो भी जहाँ से भी आये हो, मेला मनाने आये हो। मधुबन में एक संकल्प भी वा एक सेकण्ड भी व्यर्थ न जाए। समर्थ बनने का यह अभ्यास अपने स्थान पर भी सहयोग देगा। पढ़ाई और परिवार - पढ़ाई का भी लाभ लेना और परिवार का भी अनुभव विशेष करना। समझा!

बापदादा सभी जोन वालों को सदा वरदानी महादानी बनने की मुबारक दे रहे हैं। लोगों का उत्सव समाप्त हुआ लेकिन आपका उत्साह भरा उत्सव सदा है। सदा बड़ा दिन है। इसलिए हर दिन मुबारक ही मुबारक है। महाराष्ट्र सदा महान बन, महान बनाने के वरदानों से झोली भरने वाले हैं। कर्नाटक वाले सदा अपने हर्षित मुख द्वारा स्वयं भी सदा हर्षित और दूसरों को भी सदा हर्षित बनाते, झोली भरते रहना। यू.पी. वाले क्या करेंगे? सदा शीतल नदियों के समान शीतलता का वरदान दे शीतला देवियाँ बन शीतला देवी बनाओ। शीतला से सदा सर्व के सभी प्रकार के दु:ख दूर करो। ऐसे वरदानों से झोली भरो। अच्छा-

सदा श्रेष्ठ भाग्य के स्पष्ट रेखाधारी, सदा बाप समान सर्व शक्तियाँ सम्पन्न, सम्पूर्ण स्थिति में स्थित रहने वाले, सदा ईश्वरीय झलक और भाग्य की फलक में रहने वाले, हर कर्म द्वारा भाग्यवान बन भाग्य का वर्सा दिलाने वाले ऐसे मास्टर भगवान, श्रेष्ठ भाग्यवान बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।’’

पार्टियों से अव्यक्त बापदादा की मुलाकात - कुमारों से - कुमार अर्थात् निर्बन्धन। सबसे बड़ा बन्धन मन के व्यर्थ संकल्पों का है। इसमें भी निर्बन्धन। कभी-कभी यह बन्धन बांध तो नहीं लेता है? क्योंकि संकल्प शक्ति हर कदम में कमाई का आधार है। याद की यात्रा किस आधार से करते हो? संकल्प शक्ति के आधार से बाबा के पास पहुँचते हो ना! अशरीरी बन जाते हो। तो मन की शक्ति विशेष है। व्यर्थ संकल्प मन की शक्ति को कमज़ोर कर देते हैं। इसलिए इस बन्धन से मुक्त। कुमार अर्थात् सदा तीव्र पुरुषार्थी। क्योंकि जो निर्बन्धन होगा उसकी गति स्वत: तीव्र होगी। बोझ वाला धीमी गति से चलेगा। हल्का सदा तीव्रगति से चलेगा। अभी समय के प्रमाण पुरूषार्थ का समय गया। अब तीव्र पुरुषार्थी बन मंजल पर पहुँचना है।

2. कुमारों ने पुराने व्यर्थ के खाते को समाप्त कर लिया है? नया खाता समर्थ खाता है। पुराना खाता व्यर्थ है। तो पुराना खाता खत्म हुआ। वैसे भी देखो व्यवहार में कभी पुराना खाता रखा नहीं जाता है। पुराने को समाप्त कर आगे खाते को बढ़ाते रहते हैं। तो यहाँ भी पुराने खाते को समाप्त कर सदा नये ते नया हर कदम में समर्थ हो। हर संकल्प समर्थ हो। जैसा बाप वैसे बच्चे। बाप समर्थ है तो बच्चे भी फॉलो फादर कर समर्थ बन जाते हैं।

माताओं से - मातायें किस एक गुण में विशेष अनुभवी हैं? वह विशेष गुण कौन-सा? (त्याग है, सहनशीलता है) और भी कोई गुण है? माताओं का स्वरूप विशेष रहमदिल का होता है। मातायें रहमदिल होती हैं। आप बेहद की माताओं को बेहद की आत्माओं के प्रति रहम आता है? जब रहम आता है तो क्या करती हो? जो रहमदिल होते हैं वह सेवा के सिवाए रह नहीं सकते हैं। जब रहमदिल बनते हो तो अनेक आत्माओं का कल्याण हो ही जाता है। इसलिए माताओं को ‘कल्याणी’ भी कहते हैं। कल्याणी अर्थात् कल्याण करने वाली। जैसे बाप को विश्व-कल्याणकारी कहते हैं वैसे माताओं को विशेष बाप समान कल्याणी का टाइटिल मिला हुआ है। ऐसे उमंग आता है! क्या से क्या बन गये! स्व के परिवर्तन से औरों के लिए भी उमंग उत्साह आता है। हद की और बेहद की सेवा का बैलेन्स है? उस सेवा से तो हिसाब चुक्तू होता है, वह हद की सेवा है। आप तो बेहद की सेवाधारी हो। जितना सेवा का उमंग-उत्साह स्वयं में होगा उतनी सफलता होगी।

2. मातायें अपने त्याग और तपस्या द्वारा विश्व का कल्याण करने के निमित्त बनी हुई हैं। माताओं में त्याग और तपस्या की विशेषता है। इन दो विशेषताओं से सेवा के निमित्त् बन औरों को भी बाप का बनाना, इसी में बिजी रहती हो? संगमयुगी ब्राह्मणों का काम ही है ‘सेवा’ करना। ब्राह्मण सेवा के बिना रह नहीं सकते। जैसे नामधारी ब्राह्मण कथा जरूर करेंगे। तो यहाँ भी कथा करना अर्थात् सेवा करना। तो जगतमाता बन जगत के लिए सोचो। बेहद के बच्चों के लिए सोचो। सिर्फ घर में नहीं बैठ जाओ। बेहद के सेवाधारी बन सदा आगे बढ़ते चलो। हद में 63 जन्म हो गये, अभी बेहद सेवा में आगे बढ़ो। अच्छा - ओम् शान्ति।